हिसाब

चलो फिर हिसाब हो ही जाये
मुनासिब तारीख़ ढूँढ ली जाये

जो कहर हमपे बरपा है, वापस दे दो
ज़ुल्म जो धाएं हैं, उनका सौदा होगा

तारीफें अपनी, चुन चुन के लौटा दो
जो कोई छूटी, उसपे ब्याज लगेगा

निकाल के फ़ोन से, तस्वीरें दे देंगे,
पर जो लम्हे भूले जाते नही
उनके बदले क्या लीजियेगा?

याद रखिये कि ये लड़ाई बेवजह है
वजह ढूँढने का दोनों को वक़्त नही

कई फितूर तुम्हारे, मेहफूस रखे हैं
शौक से मांग लो, मगर
किसी को देने में हड़बड़ी न करना

कोई और ढूँढना पड़ेगा तुम्हारे लिए
हम सा नही, हम से भी कहीं
एक तारीख़ उसके लिए भी ढूँढो



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