पहाड़ों पे हो या समंदर किनारे, हर शेहर की अलग शक्सीयत होती है| बैंगलोर में ‘लेक’ अनेक हैं, तो कभी कभी ज़िन्दगी भी ठेहेरने लगती है| फुरसत के साथी हैं किताबें और फिल्में| कई दिनों से नाम सुन रहा था तो आखिर कल ‘मसान’ देख ली| इसमें बनारस से दो कहानियों को पिरोया गया है|