Last week, I was sitting with a bunch of old friends. One friend asked about Caesar, my golden Labrador. They always do. It has been several years since it died, yet friends ask. In school, all my friends knew about Caesar. Of late, I find it easy to capture nostalgia in my mother tongue, Hindi.


मैं जब छोटा था, मेरा साथी एक सुनेहरा लैब्रडॉर था, सीज़र। कभी कभी लेटे हुए बिस्तर से हाँथ फैलाता हूँ और सोचता हूँ कि सीज़र उठ कर आयेगा। लगता है की जब जगह बदलने के लिए उठेगा तो पकड़ लूँगा। गर्दन सहलाकर बिस्तर पे जगह बना दूंगा तो पाव में आकार लेट जायेगा। अगली झपकी खुलने पर जब धक्के से नीचे उतारने की कोशिश करूँगा तो घुर्रा कर कूद जायेगा। फर्श पे अक्सर उसे सहलाते हुए बैठ जाता था| बात समझेगा ऐसे बोलता रहता था

आज भी दोपहर को कभी घर पे हुआ तो, वरांडे के चक्कर काटता हूँ। किसी कोने में बालों का गुच्छा हो सकता है। बड़े ही धींट थे उसके बाल, कपड़ों से छूटते ही नही थे। जिस दिन घर लाये थे, वो सोता ही रहा। आखिरी बार जो देखा था उसको, सोने की सी हालत थी। उधर लॉन की दीवार के पास जिस दिन दफनाया गया उसे, इधर दराज़ से एक पुरानी फोटो ढून्ढ कर डाईरी में रख ली थी

रोज़ डाईरी खोलने की नौबत नही आतीरोज़ नींद भी नही आती। अकेले रहने में डर नही लगता। सन्नाटे में पंखे के अलावा उसकी हवा से उड़ते पर्दों या कागज़ की आवाज़ होती है। हर पल कुछ बदल रहा होता है मगर इतने धीरे की आहाट तो दूर अंदाजा भी नही लगता। ऐसे में कई लोगों को झुंझलाते हुए देखा है। उनको एक पल भी ठेहेरना चुभता है। मुझे भीड़ में उलझन लगती है, शोर सेहन नही होता और लोग समझ कम आते